
पटना के गंगा तट पर बनी खुदाबख्श लाइब्रेरी दुनिया भर की नजर में बेहद खास है। दरअसल मुगल शासनकाल की कई ऐसी चीजें यहां मौजूद है जो दुनिया के अलग-अलग कोने से रिसर्चरों को अपनी ओर खींचती है।
खुदाबख्श लाइब्रेरी की शुरुआत मौलवी मुहम्मद बक़्श जो छपरा के थे उनके निजी पुस्तकों के संग्रह से हुई थी। वे स्वयं कानून और इतिहास के विद्वान थे और पुस्तकों से उन्हें खास लगाव था। उनके निजी पुस्तकालय में लगभग चौदह सौ पांडुलिपियाँ और कुछ दुर्लभ पुस्तकें शामिल थीं।
1876 में जब वे अपनी मृत्यु-शैय्या पर थे उन्होंने अपनी पुस्तकों की ज़ायदाद अपने बेटे को सौंपते हुये पुस्तकालय खोलने की इच्छा प्रकट की। इस तरह मौलवी खुदाबक़्श खान को यह सम्पत्ति अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुई। जिसे उन्होंने लोगों को समर्पित किया।

प्राचीन काल की पाण्डुलिपि
इसके समृद्ध संग्रह में मौजूद अमूल्य पांडुलिपियों, दुर्लभ मुद्रित पुस्तकों और मुगल, राजपूत, तुर्की, ईरानी और मध्य एशियाई स्कूल के मूल चित्रों के कारण यह पुस्तकालय दुनिया भर में ख्यातिलब्ध है। यह एक उत्कृष्ट शोध पुस्तकालय के रूप में उभरा है जहाँ बड़ी संख्या में दुर्लभ पांडुलिपियां मौज़ूद हैं। जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हुयीं।लक्ष्य भी निधार्रित कर दिया है।
इस लाइब्ररी में अरबी, फारसी, उर्दू पांडुलिपियों और मुगल, राजपूत, तुर्की, ईरानी और मध्य एशियाई स्कूल के दुर्लभ चित्रों के प्रमुख भंडारों में से एक है। लाइब्रेरी लैन और इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ ईमेल सुविधाओं से लैस है।

पठन कक्ष सभी के लिए निःशुल्क
लार्ड कर्जन के नाम से रखा गया। यहां का कर्जन पठन कक्ष सभी के लिए खुला रहता है।पुस्तकालय में दो पठन कक्ष हैं। एक कक्ष रिसर्चर और स्कॉखलरों के लिए है, जबकि दूसरे कक्ष को अनियमित पाठकों के लिए रखा गया है। गंगा के तट पर स्थित इस लाइब्रेरी में एकबार जरुर जाना चाहिए। ये पूर्व के विरासत से रूबरू कराता है।
खुदाबख्श लाइब्रेरी को इस्लामी एवं भारतीय विद्या-संस्कृति के संदर्भ के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है। इस लाइब्रेरी में कई दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इस पुस्तकालय में अब विभिन्न भाषाओं में करीब 21,000 पांडुलिपियां हैं।