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बिहार जीविका ने बदली करोड़ों जिंदगियां: विश्व बैंक कर चुका है तारीफ, अब देश में मिलेगा राष्ट्रीय पुरस्कार

पटना : बिहार जीविका ने अब तक करोड़ों लोगों की ज़िंदगी बदली है। आर्थिक रूप और सामाजिक रूप से पिछड़े बिहार जैसे राज्य में जीविका ने आर्थिक मजबूती के साथ सामाजिक रूप से भी लोगों को समृद्ध किया है, खासकर महिलाओं को। पूर्वी भारत के सर्वश्रेष्ठ स्वयं सहायता समूह में बिहार के सहरसा को राष्ट्रीय पुरस्कार को दिया जाएगा। जीविका परियोजना को विश्व बैंक ने जीविका को ‘इनोवेटिव ऑफ दी इयर, 2018 के लिए पुरस्कृत किया। पूरे विश्व में विश्व बैंक के सहयोग से चल रही 185 परियोजनाओं में से जीविका सहित नौ अन्य परियोजनाओं को पुरस्कार हेतु चयन किया।

 जीविका के जरिए जीविका दीदियों होने की खेती, पशुपालन, सब्जी व दुकानदारी सहित अन्य तरह के कार्यों में करोड़ों का कारोबार किया है।  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीविका जैसी युगांतकारी योजना को मूर्तरूप दिया। जिसके बाद इसके सकारात्मक परिणाम को देखते हुए अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाया है।

विश्व बैंक ने जीविका के तहत 90 लाख परिवारों को 8 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह में संगठित कर बैंकों से 6 हजार करोड़ से ज्यादा के ऋण लेकर महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रशंसा की और कहा कि बिहार के जीविका मॉडल को दुनिया के अन्य देशों में भी विस्तारित किया जायेगा। जीविका के जरिये अस्पतालों में कैंटीन, नीरा उत्पादन, कपड़े, मोमबत्ती, मास्क व चूड़ियों जैसी हजारों वस्तुओं का निर्माण हो रहा है।

जीविका के जरिए बिहार के सवा करोड़ परिवारों को विभिन्न माध्यम से रोजगार दिया जा रहा है। यह उपलब्धि पिछले डेढ़ दशक में प्राप्त हुई है। ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्वरोजगार देने, विशेषकर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से 2006 में पांच प्रखंडों से इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी। वर्तमान में 1.27 करोड़ परिवारों तक जीविका की पहुंच है।

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