- जमुई जिले के अंतर्गत गिद्धौर प्रखंड का गंगरा गांव जहां शराब वर्षों से वर्जित है।
बिहार राज्य में शराबबंदी को सही और गलत ठहराने की तमाम कोशिशों चलती रहती है। बिहार का एक ऐसा गांव जो संभवत राज्य ही नहीं बल्कि देश के लिए अनूठा गाँव है। जमुई जिले के अंतर्गत गिद्धौर प्रखंड का गंगरा गांव जहां शराब वर्षों से वर्जित है।
यह गांव तब भी शराब से अछूता रहा, जब हर गली मोहल्ले में शराब की दुकानें हुआ करती थी और अब भी यह शराब से अछूता ही है। यह कहानी गिद्धौर प्रखंड अंतर्गत गंगरा गांव की है।
यहां के लोग अपने पूर्वज बाबा कोकिलचंद को देव तुल्य की मान्यता देते हैं। उनके ही संदेशों को आत्मसात कर शराब से खुद को दूर रखते हैं। बात सिर्फ गांव की नहीं बल्कि बाहर रहने वाली नई पीढ़ी के युवक भी शराब पार्टी में शिरकत नहीं करते।

ग्रामीणों का जीवन सूत्र बाबा का संदेश
पूर्वज बाबा कोकिल चंद का तीन संदेश ग्रामीणों के लिए जीवन सूत्र है। शराब से दूरी, नारी का सम्मान और अन्न की रक्षा ही उनका संदेश था। इसका सभी ग्रामीण वर्षों से पालन कर रहे हैं।
बाबा कोकिलचंद ने जंगल में बाघिन के हमले में अपना नश्वर शरीर त्याग किया था। तब उन्होंने नारी सम्मान करते हुए बाघिन के हमले का कोई जवाब नहीं दिया था। उसके बाद से ही उनकी पूजा-अर्चना प्रारंभ हुई। उनकी मिट्टी की पिंडी आज भी यथावत है।
मान्यताओं के अनुसार उस पिंडी के स्वरूप से कभी कोई छेड़छाड़ की कोशिश नहीं की गई। मंदिर को भी पक्का रूप देने के पहले उनकी विधिवत आज्ञा ली गई थी। लोग बाहर में भी बाबा के त्रिसूत्र का अक्षरश; पालन करते हैं।
यहाँ के युवा आधुनिक युग में शराब पीने की शौक को शान समझने की सोच को नकारते हैं। यहा के युवा का मानना है कि शराब पार्टी में शिरकत करने की दोस्तों की गुजारिश को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार करने के बाद उन्हें काफी सम्मान के दृष्टि से देखा जाता है। यह आत्म संतुष्टि का विषय है।
जिस घर में बेटी ब्याही जाती, वहाँ शराब का रिवाज न हो
यहां के लोग बेटियों की शादी से पहले भी इस बात की पूरी जानकारी ले लेते हैं कि जिनके घर उनकी बच्ची की शादी हो रही है, उनके यहां शराब पीने-पिलाने का कोई रिवाज ना हो।
अगर ऐसा होता है तो वे अपनी बेटी की शादी वह तय करने से इंकार कर देते हैं। इतना ही नहीं, गांव में आने वाली बारात को भी शराब का सेवन की मनाही का सिलसिला 400 साल पुराना है।