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महागठबंधन की नाव से आखिर क्यों कूदे मांझी?

राम विलास पासवान की भांति जीतन राम मांझी मौसम विज्ञानी बनने की राह पर हैं। मौसम बिगड़ने से पहले पाला बदलने की जुगत में मांझी ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है। जीतन राम मांझी के बेटे और हिन्दुस्तान अवाम पार्टी(हम) के नेता संतोष सुमन ने मंत्री पद से इस्तिफा दे दिया। कहा जा रहा है कि जीतन राम मांझी ने दिल्ली में बीजेपी नेता अमित शाह से मुलाकात की जिसके बाद यह सब हुआ है। इस मुलाकात के बाद नीतीश कुमार को यह अंदाजा हो गया था कि मांझी अब महागठबंधन से बाहर जाना चाह रहे हैं। इसलिए “हम” पार्टी का जदयू में विलय कराए जाने का प्रस्ताव रखा गया। दूसरी तरफ विजय कुमार चौधरी और जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने इस सिलसिले में मांझी से बातचीत भी की। लेकिन मांझी ने महागठबंधन से अलग होने का पूरा मन बना लिया था। इसलिए संतोष सुमन ने मंत्री पद से इस्तिफा दे देकर अपनी पार्टी को महागठबंधन से अलग कर लिया।

पाला बदलने में माहिर हैं मांझी!
बिहार की राजनीति में दलितों का प्रमुख चेहरा हैं जीतन राम मांझी। तीन दशक से ज्यादा समय से बिहार में अपनी राजनीति की नाव चला रहे हैं मांझी। कांग्रेस, राजद, जदयू और भाजपा लगभग सभी पार्टियों की टिकट से मांझी ने चुनाव लड़ा है। केंद्रीय कैबिनेट में राज्य मंत्री के रूप में भी शामिल हुए। लेकिन जीतन राम मांझी राजनीतिक रूप से भरोसे के काबिल कभी नहीं रहे। अवसर के हिसाब से पार्टी बदलकर चुनाव लड़ना इनके लिए आम बात रही है।

क्या एनडीए में जीतन राम मांझी के लिए जगह है?
एनडीए में दलित नेता के रूप में पहले से पशुपतिनाथ पारस एवं चिराग पासवान मौजूद हैं। ऐसे में जीतन राम मांझी की पार्टी के लिए बिहार एनडीए में कितना स्कोप बच पाता है। वहीं जिन चार सीटों पर अभी हम पार्टी का कब्जा है, वह राजद की पुरानी सीट है। ऐसे में मांझी के सामने 2025 में अपनी चार सीटें बचाने की भी चुनौती होगी। इससे पहले 2024 में एनडीए में भी सीट बंटवारे को लेकर मांझी का पेंच फंसने की संभावना है।

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