
आखिर क्या वजह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार 2000 रूपये के नोटों को वापस करना चाह रही है। सरकार के लोगों का इस मामले में तर्क है कि इससे भ्रष्टाचार और कालेधन के कारोबार को धक्का लगेगा। इस बारे में हमने जनता से बातचीत की तो लोगों का कहना था कि अगर इतनी जल्दी ही 2000 के नोट को बंद ही करना था तो 2016 में इसे लाया ही क्यों गया। सरकार का यह फैसला जनता के पल्ले नहीं पड़ रहा है। बीजेपी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को पहली बार नोटबंदी की थी जिसमें 500 और 1000 रूपये के नोटों को बंद कर दिया था। जनता सरकार के इस नये फैसले को नोटबंदी 2.0 का नाम दे रही है। हलांकि सरकार का कहना है कि यह किसी प्रकार की नोटबंदी नहीं है, 2000 रुपये के नोट 30 सितम्बर तक लेन-देन में सक्रिय रहेंगे इसे दूसरे नोटों से बदलने के लिए बैंकों में अतरिक्त व्यवस्था की जाएगी और RBI के द्वारा भी काउंटर लगाए जाएंगे।
बीजेपी सरकार की फ्लॉफ योजनाएं:
8 नवंबर 2016 को बीजेपी की सरकार ने नोटबंदी की घोषणा की। सरकार की तरफ से अचानक से की गयी घोषणा और तैयारी के आभाव में जनता को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा और सरकार के द्वारा काले धन पर लगाम लगाने की यह योजना विफल हो गयी । सरकार के द्वारा चलाई गयी स्मार्ट सिटी योजना की बात की जाए तो वह भी पूरी तरह से फ्लॉफ रही, 100 शहरों को स्मार्ट बनाने की इस योजना को लेकर 6,85,758 करोड़ रुपये के हुए निवेश से कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। नमामि गंगे योजना जिसे लिए पहले 5 वर्षों में 20 हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारिण हुआ, रकम भी खर्च हो गयी लेकिन गंगा आज भी साफ नहीं हो पायी है। 2022 में नरेंद्र मोदी सरकार को कृषि कानून को भी अंततः वापस लेना पड़ा। अब सरकार 2016 में खुद के द्वारा जारी 2000 के नोट बंद करने जा रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल 3.62 लाख करोड़ रुपये के 2000 के नोट सर्कुलेशन में हैं।