5 मई की रात कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे 300 लोगों के लिए जीवन की आखिरी रात बन गई। रेलेवे आधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार इस हादसे में तीन ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुए जिसमें एक माल गाड़ी और दो सवारी गाड़ी थी। बताया जा रहा है कि ट्रेन नंबर 12841 शालीमार से चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस के 10 से 12 डब्बे पटरी से उतर गए। कोरोमंडल एकस्प्रेस के डब्बे डिरेल होकर उस ट्रैक पर चले गए जिस पर ट्रेन नंबर 12864 बंगलुरू हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेन आ रही थी। जिस कारण बंगलुरू हावड़ा ट्रेन भी हादसे की चपेट में आ गई और यह ट्रेन पास के ट्रैक पर खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। इस प्रकार 5 मई को रात के लगभग 7:20 से 7:30 के बीच इन तीनों ट्रेनों की टक्कर हुई। इस घटना में हर घंटे मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है। खबर लिखे जाने तक मृतकों की संख्या 300 के करीब पहुंच चुकी थी, जबकि 1000 लोगों के घायल होने की खबर है। सेना को राहत बचाव कार्य में लगाया गया है।
तकनीकी खराबी या खराब तकनीक
आए दिन हम खबरों में सुनते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे भारत को हरी झण्डी दिखाकर जनता को दी बड़ी सौगाता। लेकिन क्या वंदे भारत ट्रेन या फिर बुलेट ट्रेन भारत की सबसे बड़ी आबादी के हितों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं। सवाल तो यह भी उठता है कि जो बहुत बड़ी धनराशि इन महंगी ट्रेनों पर खर्च की जा रही है क्या उसका इस्तेमाल रेलवे ट्रैक को मजबूत करने एवं परिचालन के सिंग्नल व्यवस्था को अत्याधुनिक बनाने में किया जा सकता है। Odisa train accident की बड़ी वजह भी इसी सिंग्नल व्यवस्था में खराबी को माना जा रहा है। इस बारे में The India Top ने जब लोगों से बातचीत की तो उनका कहना था कि बीजेपी की सरकार में रेलवे में सिर्फ प्रिमियम ट्रेनों के परिचालन पर फोकस किया गया। आम जनता और गरीबों के लिए कुछ नहीं किया गया। सरकार को इस दिशा में सोचने की आवश्यकता है कि ट्रेन हादसे की वजह तकनीकी खराबी है या पुरानी और खराब तकनीक है जिसे बदले दाने की आवश्कता है।
