
DESK: बैसाखी का पर्व किसानों के जीवन में उमंग और उल्लास का संचार करता है। फसल तैयार होने पर खुशी व्यक्त करने वाला यह पर्व देश के विभिन्न भागों में विविध लोक पर्वों के रूप में मनाया जाता. वैशाख शुरू होने के साथ ही सत्तुआनी का महापर्व मनाया जाता है। उत्तर भारत में कई जगहों पर इसे मनाने की परंपरा काफी पहले से चली आ रही है। इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लव स्थापित करते हैं तथा दाल से बने सत्तू खाने की परंपरा होती है। इस पर्व पर हमें समाज में समरसता तथा पारस्परिक सौहार्द्र बढ़ाने और समर्पण की भावना से सेवा का संकल्प लेना चाहिए ।
सतुआन का पर्व बैसाख माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को सतुआन का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। आम तौर पर हर साल सतुआन का पर्व 14 या 15 अप्रैल को ही मनाया जाता है। इस बार आज यानी 14 अप्रैल को सतुआन का पर्व मनाया जा रहा है।
मेष संक्रांति को ही कई राज्यों में सतुआन पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन सत्तू खाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है। मिट्टी के बर्तन में पानी, गेहूं, जौ, मकई और चना का सत्तू रखा जाता है। इसके साथ आम का टिकोरा भी रखा जाता है और भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके बाद प्रसाद के तौर पर सत्तू खाया जाता है।उत्तर भारत में कई जगहों पर इसे मनाने की परंपरा काफी पहले से चली आ रही है। झारखंड, यूपी और बिहार के कई इलाकों में गर्मी के मौसम में दोपहर में सत्तू खाने का रिवाज है। सत्तू को सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लव स्थापित करते हैं तथा दाल से बने सत्तू खाने की परंपरा होती है।
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत और प्रकृति से जुड़े लोकपर्व सतुआन की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं।