ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करनेवाले छोटे-छोटे राज्यों के खिलाड़ियों की धमक के बीच 14 करोड़ की आबादी वाले बिहार से अबतक खेलों के इस महाकुंभ में कोई नहीं पहुंच सका है। संयुक्त बिहार के समय हॉकी में कुछेक खिलाड़ी भले ही ओलंपिक में गए हो, लेकिन पिछले 21 साल से अबतक ओलंपिक में कोई नहीं जा सका है। जहां तक पटना जिले की बात है, यहां से भी अबतक बड़े फलक पर खेलों में किसी सितारे के चमकने का इंतजार है। टोक्यो ओलंपिक में भारत से 128 खिलाड़ियों के दल में बिहार से एक भी खिलाड़ी नहीं हैं, जबकि छोटे राज्य हरियाणा से 30 खिलाड़ी पहुंचे हैं। खेलों में बिहार के लिए ओलंपिक या बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मिशन मोड में अबतक कोई तैयारी नहीं होने से यहां के खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
अविभाजित बिहार से कई खिलाड़ियों ने ओलंपिक का कोटा हासिल किया था। खासकर हॉकी खेल में भारत को दो स्वर्णिम सफलता दिलाने में बिहार के खिलाड़ियों ने अहम भूमिका निभाई थी। 1980 में बिहार के सिल्वानुस डुंगडुंग और मनोहर टोपनो ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए मास्को आलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था। इसके बाद भारत को हॉकी में कोई पदक नहीं मिला। दोनों खिलाड़ी अविभाजित बिहार के सिमडेगा और खूंटी जिले के रहनेवाले थे। उस समय हॉकी से संबंधित सुविधा जमशेदपुर और रांची जैसे केंद्रों पर मौजूद थी। बिहार से झारखंड अलग होने के बाद झारखंड में हॉकी समेत अन्य खेलों में संबंधित संसाधनों में लगातार वृद्धि होती गई, लेकिन अपने बिहार में पटना में पाटलीपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स को छोड़ कोई अन्य सुविधायुक्त स्टेडियम अथवा खेल संरचनाएं विकसित नहीं पोईं।
नवादा जिले के फुटबॉलर और जिले के सपूत मेवालाल ने एशियन और ओलंपिक खेलों में खूब रंग जमाया था। उसके बाद से कोई भी खिलाड़ी बिहार से नाम नहीं कमाया। 1951 के एशियन गेम्स में सभी मैचों में गोल करनेवाले मेवालाल के इकलौते गोल के कारण ही फाइनल में भारत को गोल्ड मेडल मिल सका था। सारण के गांव में पले-बढ़े भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कोच हरेंद्र सिंह ने ओलंपिक तक का सफर तय किया। फिलहाल उन्हें अमेरिका पुरुष टीम का कोच नियुक्त किया गया है। टोक्यो आलंपिक ने कैमूर को गर्व से इतराने का मौका दिया है। भभुआ के डॉ ब्रजेश बतौर फिजियोथेरेपिस्ट कुश्ती टीम के साथ हैं। इसी गांव के प्रेमचंद सिंह ट्रिपल जंप के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं। प्रेमचंद सूबे के सबसे कम उम्र के एथलीट खिलाड़ी रहे हैं।