
DESK: भारत की कुल जनसंख्या में युवा की हिस्सेदारी 65% से अधिक है। बिहार में यह तकरीबन 70% है। बिहार पूरे देश में सबसे अधिक युवा वाला राज्य है। राज्य में युवा की फौज है, जो लंबे समय तक बरकरार रहेगी, यह एक बड़ा अवसर भी है, एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। बिहार राज्य मानव संसाधन आपूर्ति करने वाला राज्य है। कुशल और अकुशल दोनों तरह के मानव संसाधन की बहुतायत बिहार की सबसे बड़ी पूंजी है। इसे दिशा देने से बड़ी उपलब्धि हासिल हो सकती है, वहीं दिशाहीन होने पर यह भारी आफत में भी तब्दील हो सकती है।
अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण 2019-20 (AISHE) की रिपोर्ट के अनुसार 18 से 23 वर्ष के विद्यार्थियों के लिए बिहार में प्रति लाख मात्र 7 महाविद्यालय हैं। अर्थात प्रति महाविद्यालय 14285 विद्यार्थियों का बोझ है। राज्य में अच्छे शिक्षण संस्थानों की कमी की वजह से हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा बिहार से अन्य राज्यों में शिक्षा ग्रहण करने हेतु जा रहे हैं। अन्य राज्यों में शिक्षा ग्रहण करने जाने वाले विद्यार्थियों को अपने राज्य में शिक्षा ग्रहण करने के मुक़ाबले ज़्यादा खर्च करना पड़ता है।
सतत विकास लक्ष्य 2021 की रिपोर्ट के अनुसार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (क्वालिटी एजुकेशन) के मामले में बिहार की स्थान भारत के सभी राज्यों में सबसे अंतिम है। राष्ट्रीय औसत 57 अंक है, केरल को जहां 80 अंक मिले हैं वहीं बिहार को मात्र 29 अंक मिले हैं। यानी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मामले में बिहार की स्थिति राष्ट्रीय औसत के लगभग आधी है।
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देश में पहली बार बिहार सरकार जनसंख्या में युवाओं की भागीदारी के अनुपात का डेमोग्राफिक डिविडेंड हासिल करने के लिए एक बड़ी कार्ययोजना बना रही है। जिससे युवा आबादी को समुचित अवसर मिल सके, वह राज्य के एसेट्स बनें, लायबिलिटी नहीं। युवाओं से जुड़ी योजनाओं एवं उनकी समस्याओं के समाधान का एक सिंगल विंडो सिस्टम बने, जिससे उन्हें प्रक्रियागत उलझनों का शिकार न होना पड़े। वह अपने समाज, परिवार और राज्य के लिए ओजस्वी संपदा बनें।
अगर इसको लेकर बड़े स्तर पर ठोस प्रयास हुआ तो देश भर में संदेश जाएगा कि बिहार की नीतीश सरकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जनसंख्या में युवाओं की भागीदारी को बेहतरीन अवसर के रूप में बदल विकास की राजनीति को नया आयाम दे रही है।