बिहार विधान सभा चुनाव में चिराग ने बड़ा दांव खेला था। केन्द्र में भाजपा के साथ जाने का उनका फैसला लोक सभा चुनाव में सफल हो चुका था और लोजपा के छह सांसद चुनाव जीत चुके थे। खुद चिराग भी पहली बार सांसद बने थे। चिराग पासवान बिहार विधान सभा चुनाव में राजनीति का जो दांव खेल रहे थे उसमें शह-मात के बीच बहुत पतली सी लकीर थी। चिराग मान कर चल रहे थे कि उन्हें अपने लिए असली राजनीति 2025 के चुनाव में करनी है। 2020 के चुनाव में चिराग ने अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की ठानी थी। चिराग जान रहे थे कि नीतीश कुमार की उम्र 70 के पास हो चली है और आगे का समय युवा नेताओं का समय ही है। नीतीश कुमार को जेल भेजने तक की बात चिराग ने किसके बलबूते कही थी यह नीतीश कुमार से बेहतर कौन जानता है? विधान सभा चुनाव में चिराग ने टिकट देने में चुन-चुन कर नीतीश कुमार की पार्टी JDU के खिलाफ उम्मीदवार उतारे। कहीं-कहीं तेजस्वी को भी ताकत दी। 5-6 सीटों पर भाजपा को भी नुकसान पहुंचाया। चिराग खुद को नरेन्द्र मोदी का हनुमान बताते रहे और तेजस्वी यादव के खिलाफ भी कुछ नहीं बोला। उनके टारगेट पर नीतीश और सिर्फ नीतीश रहे।
बदलते राजनीतिक समीकरण के बीच चिराग पासवान ने कह दिया है कि अभी बिहार में चुनाव नहीं है और फिलहाल उनके महागठबंधन में शामिल होने का सवाल नहीं है। लेकिन, चिराग और तेजस्वी की बातों से दोनों की नजदीकियां खूब झलक रही हैं। तेजस्वी यादव को चिराग पासवान में 16 फीसदी दलित वोट बैंक दिख रहा है। महागठबंधन में कोई ऐसा नेता है भी नहीं जो दलित वोट बैंक को एकजुट रख सके। राष्ट्रीय जनता दल में श्याम रजक हैं, लेकिन वे जीतन राम मांझी के कद के नहीं हैं। चिराग की खूबी यह है कि उनके पीछे रामविलास पासवान की छाया है। इस समय जब चिराग के घर में ही फूट है तेजस्वी का न्योता बहुत राहत जैसी बात है। रामविलास पासवान का जन्मदिन मना कर भी तेजस्वी ने चिराग तक मेसेज पहुंचाया है। राष्ट्रीय जनता दल, महागठबंधन को लगातार और ज्यादा मजबूत करना चाहता है। चिराग अभी लोगों के बीच अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं। वे अपनी बड़ा मां से भी मिलने गए। यानी चिराग 2025 के विधान सभा चुनाव के पहले खुद की सभी कमियां दूर करने में लगे हैं। उनको मास लीडर बनने में अभी समय लगेगा। तेजस्वी को चिराग के साथ आने का इंतजार करना होगा।