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बिहार में चुनाव के नाम पर करोड़ों का घोटाला! 2 की कैंडल 29 तो 50 की झाड़ू 98 रुपये में

चुनाव को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है. इस पर्व को संपन्न कराने में करोड़ों-अरबों खर्च होते हैं, लेकिन इस पवित्र पर्व को भ्रष्ट अधिकारी लूट पर्व (Bihar Election Scam) में बदलने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. इसका खुलासा करते हुए हम आपको बता रहे हैं कि कैसे चुनाव में सरकारी धन का बंदरबांट हुआ है. जांच में एक वेंडर का 10 से 15 करोड़ का बिल सिर्फ मधेपुरा जिले के 4 विधानसभा में फर्जी पाया गया. पूरा मामला विधानसभा चुनाव 2020 से जुड़ा है, जहां चुनावी खर्च के नाम पर करोड़ो रुपये का बंदर बांट हुआ है. जांच में जो बातें सामने आई हैं, उसके मुताबिक 10 से 15 करोड़ का फर्जीवाड़ा हुआ है. फर्जी बिल के आधार पर सरकार और प्रशासन को करोड़ों रुपये का चूना लगाने का प्रयास किया गया है. इस घपले में पूर्व के कई वरीय अधिकारियों की भी संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है. नए डीएम की जांच में इन सारे घोटालों का खुलासा हुआ है. घोटाले की बानगी ऐसी है कि 2 रुपये की मोमबत्ती 29 रुपये में ख़रीदी गई और 50 का झाड़ू 98 रुपये में लिया गया. कई सामान के लिए तो कीमत से ज्‍यादा भाड़े में ही खर्च कर दी गई.

मधेपुरा में हुए इस घोटाले में चुनाव संबंधी सामग्री सप्लाई करने वाली एजेंसी ने 15 से 20 करोड़ का फर्जी बिल बना दिया. शुरुआती जांच में ही 5 से 10 करोड़ के 9 विपत्र को फर्जी पाया गया. शेष 10 करोड़ 32 लाख 34 हजार 100 रुपये के बिल की भी जब नए डीएम ने जांच करवाई तो पता चला कि इसमें भी 3 करोड़ 68 लाख 10 हजार 592 रुपये का बिल ही बनता है, जबकि एजेंसी को पूर्व के डीएम ने ही 2 करोड़ 95 लाख रुपये का एडवांस कर दिया था. ऐसे में जीएसटी आदि कटौती के बाद 15 लाख 37 हजार रुपये एजेंसी को जमा करने का आदेश दिया गया जो अब तक जमा नहीं हुआ है. इस बड़े घोटाले को सामने लाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और मधेपुरा यूथ एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल यादव की मानें तो जिले के टेंडर प्रक्रिया में ही बड़ी गड़बड़ी है. इसे लेकर उनके द्वारा आरटीआई भी लगाया गया, लेकिन उसका कोई सही जवाब नहीं आया है. सीपीआई के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य प्रमोद प्रभाकर ने भी इस बड़े घोटाले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है, जिससे भविष्य में होने वाले चुनावी खर्च के नाम पर होने वाले घोटाले को रोका जा सके.

सूत्र बताते हैं कि सभी फर्जी बिल की निकासी का रास्ता साफ हो चुका था, लेकिन ऐन मौके पर डीएम का ट्रांसफर हो गया. जब नए डीएम आए तो उन्होंने बिल की जांच करा दी. फिर क्या था सारा घोटाला परत दर परत खुलने लगा. 29 करोड़ का बिल 13 करोड़ का हो गया. सहरसा जिले के विजय श्री प्रेस नामक वेंडर का 9 विपत्र फर्जी पाया गया. इसकी कुल राशि 5 से 10 करोड़ की बताई जाती है. शेष विपत्र की भी जब जांच हुई तो उसमें भी स्पलाई सामान की मात्रा या संख्या और गुणवत्ता में अंतर पाया गया जो 7 करोड़ से अधिक का था. अब जिला के एडीएम उपेंद्र कुमार की मानें तो हर गलत बिल का काटा गया है.

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