
DESK : नीतीश सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्र में व्यापक बदलाव की दिशा में सात निश्चय की शुरुआत की गई,जो कई समावेशी योजनाओं का पैकेज है। इन्हीं योजनाओं का नतीजा है कि बिहार भले ही राष्ट्रीय औसत में पिछड़े पायदान पर है लेकिन सीमित संसाधनों में बिहार ने हर क्षेत्र में तरक्की की है।
मानव विकास सूचकांक 0.47 से बढ़कर आज 0.57 पहुंच गया है। इसी तरह जीवन प्रत्याशा में भी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, जो 64.1 से बढ़कर 68.1 हो गई है। बिहार ने गत दशक में साक्षरता दर के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है।
बिहार की साक्षरता दर 47 फीसदी से उछलकर 61.8 फीसदी से भी अधिक हो गई है। राज्य में महिला साक्षरता की स्थिति 33.12 थी जो अब बढ़कर 53.33 प्रतिशत हो गई है। विद्यालय में प्रवेश लेने वाले अनेक बच्चे गरीबी, माता- पिता के कम शैक्षिक स्तर या परिवार की कमजोर संरचना की वजह से शिक्षा पूरी किये बिना पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में भी सुधार हुआ है। जहां पहले बिहार की ड्रॉप आउट दर 46.12 फीसदी थी, वहीं यह घटकर 38.69 फीसदी हुई। बिहार में कुपोषण के मामलों में भी सुधार देखने हो मिल रहा है।
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कुपोषण दर 55.6 से खिसककर 48.3 फीसदी पर आ गया है। महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर चल रही तमाम योजनाओं व बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का परिणाम है कि शिशु मृत्यु दर व मातृ मृत्यु दर में अच्छी-खासी कमी देखी गई है। शिशु मृत्यु दर 61 से घटकर 38 व मातृ मृत्यु दर 312 से कम होकर 165 पर आ गई है। जिसमें लगातार सुधार के लिए नीतीश सरकार प्रयास कर रही है। इस तरह हम देखते हैं कि बिहार तमाम आर्थिक,भौगोलिक व सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए भी हर क्षेत्र में सुधार किया है हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर अभी और बेहतर करना होगा। राष्ट्रीय औसत में बिहार अभी भी पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आता है, जिसकी पुष्टि नीति आयोग की रिपोर्ट में भी होती है। बिहार को अगर विशेष राज्य का दर्जा मिलता है तो राज्य की प्रगति को रफ्तार मिलेगी और हर क्षेत्र का समुचित विकास हो सकेगा।