
हलांकि जातीय गणना में सिर्फ संख्या जारी की गयी है। ऐसे में सामाजिक- आर्थिक आंकड़ों का सामने आना बाकि है। सरकार देखेगी कि किस जाति वर्ग ने कितनी तरक्की की है। विकास की रफ्तार में कौन सी जाति या समूह पीछे रह गया है। ऐसे सरकार कुछ नया निर्णय ले सकती है। हलांकि नीतीश कुमार ने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए आरक्षण की बात की है। जिसके साथ जातीवार आरक्षण का मुद्दा भी सामने आने लगा है। इसे लोग मंडल पार्ट 2 भी बुला रहे हैं।
मंडल पार्ट 2: बदल जाएगा आरक्षण का स्वरूप?
बिहार सरकार के द्वारा जातीय आंकड़े जारी कर दिए गए हैं। जातीय आंकड़े के अनुसार बिहार में आरक्षित आबादी लगभग 85 प्रतिशत है।जिसमें पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की संख्या लगभग 63 प्रतिशत है। जबकि इन जातियों के लिए कुल आरक्षण 27 फिसदी है। मतलब पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों की संख्या का 50 फिसदी आरक्षण भी उन्हें नहीं प्राप्त है।
वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति का आंकड़ा जोड़े तो यह कुल 85 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। कुल आरक्षण का दायरा फिल्हाल 50 फिसदी का है। ऐसे में नए आंकड़ों को देखते हुए आरक्षण को पुनः परिभाषित किया जा सकता है। विभिन्न वर्गों की तरफ से जातीय अनुपात में आरक्षण की मांग उठने भी लगी है।
क्या है मंडल कमीशन की कहानी?
मंडल आयोग की स्थापना 1 जनवरी, 1979 को की गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस आयोग की स्थापना करवाई थी। यह आयोग सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग के रूप में जाना जाता है। इस आयोग का नेतृत्व भारतीय सांसद बी.पी. मंडल ने किया था। इसलिए इस आयोग को मंडल आयोग या मंडल कमाशन कहा गया। ‘सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लोगों की पहचान के लिए इस आयोग की स्थापना हुई।
इस आयोग ने दिसंबर 1980 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को सौंपी। इस रिपोर्ट में सभी धर्मों के पिछड़े वर्ग को शामिल किया गया। जिसमें साढ़े तीन हज़ार से भी ज़्यादा जातियों की पहचान की गई। कमीशन ने सरकारी नौकरियों में OBC को 27 फ़ीसदी आरक्षण की सिफ़ारिश की। मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने लागू किया। जिसके तहत केंद्र की नौकरियों में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को आरक्षण दिया गया।