
एक प्रसिद्ध अंग्रेजी कहावत है Justice delayed is Justice denied. इसका मतलब है कि न्याय में देरी न्यान नहीं मिलने जैसा है। भारत के न्यायलयों में लंबित मुकदमों की संख्या इस कहावत पर फिट बैठती है। भारतीय अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ से ऊपर हो चुकी है। लंबित मुकदमों की इतनी बड़ी संख्या चिंताजनक है। इस बाबत राज्यसभा में एक लिखित जवाब में केंद्रीय विधि मंत्री ने इसकी जानकारी दी। मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि अदालतों में 5.02 करोड़ से ज्यादा मुदमें लंबित हैं।
एक अनुमान के अनुसार, INDIA में दस में से ऩौ मामले अदालतों में फंसे रहते हैं। मतलब यह कि केवल दस प्रतिशत मामलों में ही त्वरित कार्यवाही चल पाती है। आखिर इतने मामले क्यों लंबित हैं? इसका एक पहलू यह भी है कि लोग पहले की तुलना में अधिक सजग हुए हैं। अपराध के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। न्याय के लिए अदालतों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू है मुकदमों की बढ़ती संख्या। जिससे न्याय की प्रक्रिया में देरी होना। ऐसे में न्याय की प्रत्याशा में जो अदालत का रुख करते हैं उन्हें निराशा मिल रही है। यही निराशा गैर-अपराधी को भी मुश्किल रास्ता चुनने के लिए मजबूर कर देता है। जिससे कानून -व्यवस्था के लिए चुनौती और बढ़ जाती है।
दिसंबर 2022 तक क्या थी देश की स्थिति।
देश में कुल 5.04 करोड़ मुकदमें लंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 69,766 हो गई है।
उच्च न्यायालयों में 1, 108 जजों की तुलना में महज 778 जज
निचली अदालतों में 24,631 जजों की तुलना में मात्र 19, 288 जज।
लंबित मुकदमों के कारण भी बढ़ रहे अपराध।
मणिपुर जैसी घटनाओं में अपराधियों के बुलंद हौसले की वजह अदालतों की स्थिति भी है। जब बरसों बरस तक मुकदमें चलते रहेंगे। अपराधियों को सजा नहीं मिलेगी। पीड़ित न्याय के लिए अदालतों के चक्कर काटते रहेंगे तो अपराध बढ़ेंगे ही। मणिपुर की स्थिति को ही देखिए। दंगे के दिन 3 मई से अबतक 6000 से अधिक एफआईआर दर्ज हुए हैं। हर रोज मुकदमों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इनमें से ज्यादातर मामले अदालतों में जाएंगे और दोषियों को सजा मिलने में न जाने कितना समय लगेगा? यदि मणिपुर में तत्काल प्रभाव से कानून का राज कायम करना है, तो अदालतों को भी त्वरित न्याय करना होगा।
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