
बिहार सरकार ने जब से जातीय गणना की घोषणा की मामला कोर्ट में फंसता रहा। लेकिन पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर से जातीय गणना का काम शुरू हो गया है। जातीय गणना को लेकर बिहार सरकार कहना है कि अगस्त तक इसे पूरा कर लिया जाएगा। इधर इसी बीच दिल्ली आधारित एक NGO इसकी रिपोर्ट पर रोक लगाने की अपील की। सुप्रीम कोर्ट में इस अपील पर सुनवाई हुई और पटना हाईकोर्ट के फैसले को जारी रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पटना हाईकोर्ट के फैसले में हम दखल नहीं देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि हम जातीय गणना की रिपोर्ट के जारी होने पर रोक नहीं लगाएंगे।
कई राज्यों में जातीय गणना की उठी मांग।
एक तरफ जातीय गणना के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल हो रही है। वहीं कई राज्यों की राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने राज्य में इस गणना को कराने की मांग कर रहे हैं। बिहार में भी नीतीश कुमार की विपक्षी पार्टियों ने भी जातीय गणना का समर्थन किया। कई नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से कोर्ट के फैसले का स्वागत भी किया। उत्तरप्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने योगी सरकार से जातीय गणना कराने की अपील की।
आइए जानते हैं जातीय गणना के क्या-क्या फायदे हो सकते हैं।
समाज के सभी वर्गों का सही और सटीक आंकड़ा मिलेगा।
समावेशी विकास के जातीय गणना के आंकड़े महत्वपूर्ण साबित होंगे।
हर वर्ग की सामजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति का पता चलेगा।
विकास की योजनाओं में लक्षित वर्ग की पहचान में आसानी होगी
विकास के क्रम में पीछड़ गए वर्गों का वास्तविक स्थिति पता चलेगी
नई विकास योजनाएं बनाने में सहायता मिलेगी।
योजनाओं की पहुंच पहले से बेहतर होगी।
जातीय गणना देश के कोई नई बात नहीं है। पहले भी ऐसी गणनाएं होती रही हैं। कहा जाता है कि 2011 की गणना में भी समाजिक आर्थिक आंकड़े जुटाए गए। लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा उन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया। वर्तमान में भारत के 4 राज्यों में जातीय गणना कराई जा चुकी है।