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One Nation One Election से किसे होगा फायदा? क्या BJP इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहती है?

एक देश एक चुनाव के क्या हैं फायदे और नुकसानय़

केंद्र की बीजेपी सरकार ने One Nation one election के लिए कमिटि बनाई है। संसद का विशेष सत्र इसकी परिचर्चा के लिए आहूत किया गया है। केंद्र सरकार की इस घोषणा के बाद देश की राजनीति में बवाल मच गया है। कुछ इसे विकासपरक सोच बता रहे हैं तो कोई इसे लोकतंत्र की हत्या बता रहा है। पक्ष और विपक्ष दोनों इस मामले में आमने सामने आ गए हैं।

NDA सरकार की इस घोषणा को नीतीश कुमार के बयान से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल नीतीश कुमार ने कुछ दिन पहले कहा था कि बीजेपी समय से पहले चुनाव करा सकती है। विपक्ष की मुंबई बैठक से पहले नीतीश का यह बयान सामने आया था। जिसके बाद I.N.D.I.A. की बैठक में इस पर विशेष चर्चा की खबर सामने आई थी।

“एक देश एक चुनाव” पर फिल्हाल पूरे देश में चर्चा होने लगी है। इसलिए The India Top अपने पाठकों को इसके पक्ष और विपक्ष दोनों तर्कों को समझाने की कोशिश करेगा।

“एक देश एक चुनाव” के विरोध में तर्क क्या हैं?

मौजूदा कुछ विधानसभा को समय से पूर्व भंग किया जाएगा।

कुछ विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक हो जाएगा।

ऐसा कदम लोकतंत्र और संघवाद को कमज़ोर करेगा।

एक देश एक चुनाव मत व्यवहार को सीमित कर देगा।

क्षेत्रिय पार्टियों को भारी नुकसान होगा।

केंद्र की सत्ताधारी पार्टी को लाभ मिलेगा।

One Nation one election में क्षेत्रिय मुद्दों को नजरअंदाज किया जाएगा।

जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही में कमी आएगी।

एक साथ चुनाव के पक्ष में तर्क क्या हैं?

चुनाव की बारंबारता में कमी होगी।

इससे धन और समय की भारी बचत होगी।

आदर्श आचार संहिता थोड़े समय के लिए होगा तो विकास कार्य तेजी से होंगे।

सुरक्षा बलों को ज्यादा समय संवेदनशील क्षेत्रों में लगाया जा सकेगा।

#Ek_Desh_Ek _Chunav को लेकर पहले भी कई बार विचार किया जा चुका है। विधि आयोग ने इससे पहले भी केंद्र सरकार को इसके लिए मना किया है। जिसके पीछे कई तर्क रखे गए जिसमें बड़ी जनसंख्या और बड़ा क्षेत्रफल भी एक था। एक देश एक चुनाव की जटीलता को देखते हुए इसपर पहले कभी भी कार्य नहीं हो पाया। आइए जानते हैं देश में एक साथ चुनाव का इतिहास क्या कहता है।

एक साथ चुनाव का इतिहास।

1983 में पहली बार चुनाव आयोग ने इसे प्रस्तावित किया।

1967 तक एक साथ चुनाव भारत में हो चुके थे।

पहला चुनाव (लोकसभा+राज्य विधानसभा) वर्ष 1951-52 में एक साथ हुए थे।

वर्ष 1957,1962 और 1967 में भी यह प्रथा जारी रही।

इसके बाद 1968 और वर्ष 1969 में कुछ विधानसभा समय पूर्व भंग हुए।

जिससे एकसाथ चुनाव का क्रम टूट गया।

सन 1970 में लोकसभा समय से पहले भंग हो गई थी।

1971 में लोकसभा चुनाव कार्यकाल से पूर्व कराए गए।

एक देश एक चुनाव को लेकर फिल्हाल आठ सदस्यीय कमिटि बनाई गई है। इस कमिटि की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद कर रह हैं। विपक्ष से कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को शामिल किया गया है। हलांकि अधीर रंजन चौधरी ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया है। अब आने वाले वक्त में यह देखना दिलचस्प होगा कि कमिटि सरकार को क्या सुझाव देती है।

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