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आनंद मोहन को रिहा करवाकर नीतीश कुमार ने लिया बड़ा खतरा, 6% के लिए 18% को लगाया दांव पर!

DESK : राजनीति में साम-दाम-दंड-भेद सब जायज है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसमें महारथ हासिल किए हुए हैं. इन दिनों इनकी निगाहें दिल्ली की गद्दी पर है. ‘मिशन मोदी हटाओ’ के लिए उन्होंने दिन- रात एक कर दिया है. इस गद्दी को पाने में उन्हें जहां फायदा दिख रहा है. वह वहां जा रहे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने आनंद मोहन को भी रिहा करवा दिया है.

बता दे डीएम जी कृष्णैया के हत्यारे आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया है. आनंद मोहन को रिहा कराने के लिए नीतीश कुमार ने नियमों तक में बदलाव कर दिया. लेकिन इस रिहाई के पीछे भी सियासी मतलब छिपा हुआ है. सियासी जानकारों का मानना है कि राजपूतों का वोट पाने के लिए नीतीश कुमार ने या बड़ा खेला किया है.

मोदी को हराने के लिए नीतीश को एक- एक वोट का महत्व पता है. यही वजह है कि 6% वोट बैंक को वह नहीं छोड़ सकते. बिहार में राजपूत समाज की 6% से ज्यादा आबादी है. इस समाज के लोग कई सीटों पर हार जीत का फैसला तय कर सकते हैं. 2020 में विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यही संकेत देते हैं. उस समय JDU कोटे से खड़े दो और RJD के छह राजपूतों उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए थे. वहीं बीजेपी के 15 राजपूत उम्मीदवारों ने इस चुनाव में जीत हासिल की थी.

वहीं आनंद मोहन को रिहा करके राजपूत समाज को एक करने की कोशिश की जा रही है. मैसेज देने की कोशिश की जा रही है कि हम उनके शुभचिंतक है.

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राजनीति मज़बूरी के कारण भले ही बिहार में किसी ने इसका विरोध ना किया हो. लेकिन UP में इसके खिलाफ लोगों ने आवाज उठाना शुरू कर दिया है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले की कड़ी निंदा कि है. उन्होंने इस फैसले को दलित विरोधी बताया है. बिहार में इस फैसले का आने वाले समय में क्या असर होगा. यह तो बाद में पता चलेगा.

बिहार में दलित और महादलित की आबादी 18% के करीब है. राज्य के हर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 40 से 50 हज़ार दलित मतदाता है. 13 लोकसभा सीटों पर यह जीत हार में निर्णायक की भूमिका निभाते हैं. जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और पशुपति पारस की राजनीति भी अपने समाज के दलित वोटरों की मदद से ही चल रही है. सुशासन बाबू में गुंडाराज खत्म होने से दलितों का एक बड़ा तबका उन्हें वोट करने के बारे में सोच रहा था. लेकिन नीतीश कुमार के इस फैसले से वह खिसक सकते है.

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