
राजद के सांसद मनोज झा के बयान पर राजनीति गर्म है। विरोधी पार्टी के साथ-साथ सहयोगी जदयू भी हमलावर हो गई है। मनोज झा ने “कुआं ठाकुर का” कविता का पाठ संसद में किया। इस कविता में प्रयोग किए गए ठाकुर शब्द पर आपत्ति जताई जा रही है। राजद पर सवर्ण विरोधी टिप्पणी करने का आरोप लगा है। आरोप लगाया जा रहा है कि राजद शुरू से ही सवर्णों को खिलाफ समाज को बांटती रही है। मनोज झा के द्वारा पढ़ी गई कविता राजद के सवर्ण विरोधी राजनीति का उदाहरण है।
इस बयान के बाद बीजेपी के एक ठाकुर नेता ने मनोज झा को ललकार दिया। कहा कि मेरे सामने यह बात कही गई होती तो मैं मनोज झा का मुंह तोड़ देता। वहीं पूर्व सांसद आनंद मोहन ने जुबान खींचने तक की बात कह डाली। इन सब धमकियों को देखते हुए मनोज झा ने विशेष सुरक्षा की मांग की है।
“कुआं ठाकुर का” पर आमने-सामने राजद और जदयू!
मनोज झा ने संसद में दिए बयान में यह कहा था कि हमसब के अंदर एक ठाकुर है। आगे झा ने कहा कि मेरे अंदर भी एक ठाकुर है। हमारे-आपके अंदर बसे ठाकुर वाली सोच को समाप्त करने की आवश्यकता है। इस बात को लेकर ठाकुर समाज से आने वाले जदयू नेता अनंत सिंह ने विरोध किया। इसके बाद ठाकुर समाज के दूसरे नेता सुमित सिंह भी मैदान में कूद गए। इस प्रकार इस बयान को लेकर राजनीति तेज हो गई। इधर राजद के भी कुछ नेताओं ने मनोज झा का विरोध शुरू कर दिया।
महागठबंधन के नेताओं के मनोज झा के विरोध के बीच लालू ने भी इंट्री मारी है। लालू यादव ने मनोज झा का समर्थन किया और बयानबाजी कर रहे नेताओं को फटकार लगाई। लालू यादव से पूछा गया कि अनंत सिंह के विरोध पर उनकी राय क्या है? इसपर लालू यादव ने कहा कि उनके पास दिमाग कम है। बाकी अन्य नेताओं पर लालू यादव ने अपनी टिप्पणी की। लालू ने कहा कि अगर दिमाग होता तो वे लोग इस कविता का विरोध नहीं करते। लालू ने आगे कहा कि बयान सात दिन पुराना है। तो अभी अचानक से सबको इसमें बुराई कैसे दिखने लगी। यह सब भाजपा की चाल है।
“ठाकुर का कुआं” के कौन हैं रचनाकार?
इस कविता को लिखने वाले साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मिकी हैं। दलित साहित्यों के लेखन के लिए प्रसिद्ध ओमप्रकाश जी ने यह कविता 1981में लिखी थी। ओमप्रकाश वाल्मिकी उत्तरप्रदेश के मुजफ्फर नगर के रहने वाले हैं। ठाकुर का कुआं कविता से वाल्मीकि जी को पहचान मिली। वर्ष 1997 में प्रकाशित आत्मकथा जूठन ने ओम प्रकाश वाल्मीकि को प्रसिद्धि दिलाई। इनकी मृत्यु 2013 में हो गई थी।
कविता जिसपर मचा बवाल!
चूल्हा मिट्टी का,
मिट्टी तालाब की,
तालाब ठाकुर का.
भूख रोटी की,
रोटी बाजरे की,
बाजरा खेत का,
खेत ठाकुर का.
बैल ठाकुर का,
हल ठाकुर का,
हल की मूठ पर हथेली अपनी,
फसल ठाकुर की.
कुआं ठाकुर का,
पानी ठाकुर का,
खेत-खलिहान ठाकुर के,
गली-मोहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?