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मुद्दा: बिहार में शुरू हुआ जातीय गणना का ऐतिहासिक काम

पटना: जातीय जनगणना का उद्देश्य वंचित लोगों की संख्या का आकलन कर उनके लिए समुचित विकास करना है। अवसर की समानता के लिए ‘सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों’ को आरक्षण के माध्यम से लाभार्थी बनाने को संविधान ने अनिवार्य बताया है। जिसे जातीय जनगणना के माध्यम से तार्किक रूप से लागू किया जा सकता है।

सभी वर्गों का समुचित विकास हो इसके लिए सभी जातियों के सही आंकड़ों का होना जरूरी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी दलों की सहमति से बिहार में जातीय गणना का ऐतिहासिक काम शुरू हो गया है। इस गणना में हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति की सटीक जानकारी जुटाई जा रही है, साथ ही घरों की भी गणना के साथ साथ बिहार के एक-एक व्यक्ति की गिनती की जा रही है। नीतीश जी का सख्त निर्देश है कि ये गणना पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण होनी चाहिए। इसे लेकर गणना कर्मियों को हर स्तर पर प्रशिक्षित भी किया गया है। बिहार के हर व्यक्ति का न्याय के साथ समुचित विकास हो, चाहे जिस भी जाति का व्यक्ति हो उसे आवश्यक सहायता मिलनी ही चाहिए। इसी उदेश्य के साथ राज्य में नीतीश सरकार अपने खर्च पर जातीय गणना करवा रही है।

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देश में फिलहाल पिछड़ी जातियों के लिए 27 % आरक्षण की व्यवस्था है, आरक्षण की सीमा बढ़ाने और अन्य योजनाओं में उनकी सही भागीदारी तय हो इसके लिए जातियों की गणना अतिआवश्यक है। आश्चर्य की बात है कि आज हमारे पास जातियों की संख्या को लेकर कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है। वर्ष 1931 के आंकड़े को आधार बनाकर ही मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 % आरक्षण की सिफारिश की थी। जिसका लाभ आज देश के पिछड़ी जातियों को मिल रहा है। जब हमारे देश में आरक्षण की सारी व्यवस्था ही जाति पर आधारित है तो जातियों के आंकड़ें जुटाने में क्यों परहेज होना चाहिए?

जदयू की ओर से लगातार जातीय गणना की तार्किक मांग की जाती रही है। पार्टी का मानना है कि जातीय गणना के बिना सभी वर्गों के समग्र उत्थान के लिए चलाई जा रही योजनाओं का उचित लाभ नहीं दिया जा सकता। हर व्यक्ति के विकास से राज्य का विकास और राज्य के विकास से ही देश विकसित होगा।

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