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ओवैसी की एंट्री से बीजेपी में खुशी, महागठबंधन की बढ़ी चिंता…

Desk : बिहार के मुस्लिम बहुल इलाके ओवैसी को सूट करते हैं। यही वजह है कि 2020 में उन्होंने सीमांचल से अपने उम्मीदवार उतारने का पहला प्रयोग किया। इसमें उन्हें अप्रत्याशित कामयाबी भी मिली। बाद में विधानसभा की दो सीटों- कुढ़नी और गोपालगंज के लिए हुए उपचुनावों में भी ओवैसी के उम्मीदवारों का असर दिखा। गोपालगंज में अगर ओवैसी के उम्मीदवार ने वोट नहीं काटे होते तो आरजेडी के उम्मीदवार का जीतना तय था। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि ओवैसी की पार्टी अगर चुनाव मैदान में उतरती है तो उसके उम्मीदवार भले न जीतें, पर महागठबंधन के कैंडिडेट के जीतने में बाधा तो बन ही सकते हैं। बीजेपी तो यही चाहती भी है। महागठबंधन के वोट कट जाएं और हिन्दुत्व के नाम पर हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण बीजेपी की सफलता के लिए जरूरी है।

सीमांचल में एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी के पहुंचने के साथ ही सियासी सरगर्मी बढ़ गयी है। ओवैसी दो दिनों तक सीमांचल के मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज के अलग-अलग क्षेत्रों में सभाएं कर रहे हैं। इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और महागठबंधन के नेता भी इस इलाके में सभाएं कर चुके हैं। मुस्लिम बहुल होने के कारण महागठबंधन को अपना बड़ा वोट बैंक सीमांचल में दिखता है। इसलिए कि महागठबंधन के बड़े घटक आरजेडी के एम-वाई समीकरण के एक हिस्से मुस्लिम यहां अधिक प्रभावकारी हैं। कहने को तो यह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी है, लेकिन वास्तव में महागठबंधन और एनडीए सीमांचल में 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी भी कर रही है। अब तो ओवैसी ने एंट्री मार ली है। ओवैसी का आना महागठबंधन के लिए जहां खतरे की घंटी है, वहीं बीजेपी खेमे में इससे खुशी की लहर है।

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सीमांचल में एआईएमआईएम के जनाधार का पहली बार पता तब चला, जब 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में इसके 5 एमएलए चुने गये थे। हालांकि दुर्भाग्य यह रहा कि उनमें 4 बाद में पाला बदल कर आरजेडी का हिस्सा बन गये। ओवैसी इस बात से भी आरजेडी के प्रति बेहद गुस्से में हैं। वे इसका बदला लेने की नीयत से ही सीमांचल में अपनी सक्रियता फिर से बढ़ाने पहुंचे हैं। अर्से तक मुस्लिम आरजेडी के समर्थक रहे। नीतीश के नेतृत्व में जब एनडीए की सरकार बनी तो मुस्लिमों का रुझान जेडीयू की तरफ बढ़ा। आरजेडी के आधार वोट को नीतीश ने अपने पाले में कर लिया। इसके लिए नीतीश ने बड़े कायदे से काम किये। सबसे पहले पिछड़े मुसलमानों की पसमांदा श्रेणी बना कर उन्होंने उनको अपनी ओर आकर्षित किया।

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