
देश और दुनिया से आ रहे तमाम आंकड़े भारत की धीमी अर्थव्यवस्था को दर्शा रहे हैं। जुलाई 2023 में रिजर्व बैंक ने एक बुलेटिन जारी किया। जिसका एक लेख बताता है कि मैन्यूफैक्चरिंग और निवेश के मामले में विकास की गाड़ी धीमी पड़ रही है। बुलेटिन में भारतीय अर्थव्यवस्था में इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटलीकरण, सौर ऊर्जा उत्पादन एवं सेवा क्षेत्र में हो रहे कार्यों को बताया गया है। इनमें से कुछ दावे सही हैं और कुछ विचार किए जाने योग्य हैं।
RBI बुलेटिन और क्या बताया गया है जो चिंताजनक है !
1.ऊंची बेरोजगारी दर।
Low employbility rate.
2.मनरेगा काम की मांग में वृद्धि।
Increased demand in MANREGA job.
3.मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादों के निर्यात में कमी।
Slow down in export of manufacturing goods.
4.राजस्व व्यय में कमी।
Decrease in revenue expenditure.
5.उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में वृद्धि।
Increase in consumer price index.
मोदी राज में देश की आर्थिक स्थिति पहले से खराब रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2004 से 2009 तक पांच वर्षों के बीच 18.5 फीसदी की वृद्धि हुई। वहीं 2004 से 2014 यानी दस साल तक भारत ने 7.5 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर हासिल की थी जबकि वर्ष 2014 से 2023 के बीच नौ साल में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत ही रही। मतलब बीजेपी काल में देश की आर्थिक स्थिति पूर्व के दस सालों से खराब रही है।
क्यो बिगड़ रही है देश की अर्थव्यवस्था?
देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी है। कम श्रम भागीदारी दर और उच्च बेरोजगारी दर भारत को पीछे धकेल रहा है। देश में 15 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी कुल जनसंख्या का 61 फीसदी यानी 84 करोड़ है। वर्ष 2036 के बाद कामकाजी आबादी की यह संख्या कम होने वाली है। यानी जिस युवा आबादी के बल पर हम तरक्की करना चाह रहे हैं वह थोड़े समय के लिए है।
श्रम भागीदारी में कमी यानि लोगों को नहीं मिल रहा काम।
INDIA में श्रम भागीदारी दर का आंकड़ा भी डराने वाला है। जून 2023 में यह दर गिरकर 40 प्रतिशत से कम रह गई (जबकि चीन में यह दर 67 फीसदी है)। महिला श्रम भागीदारी दर का आंकड़ा तो और भी दयनीय- मात्र 32.8 प्रतिशत है। शेष 60 फीसदी कामकाजी आबादी (पुरुष और स्त्री, दोनों) तथा 67.2 प्रतिशत महिलाओं के पास काम नहीं है। 15 से 24 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर 24 प्रतिशत है।
रोजगार के अभाव में देश की अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है। ऐसे में मोदी सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
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