
Patna : देश में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में होती है। इसके उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा मिथिलांचल का है। एक आंकड़ें के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 120,000 टन बीज मखाना का उत्पादन होता है, जिससे 40,000 टन मखाने का लावा प्राप्त होता है। बिहार के मिथिलांचल में बड़े स्तर पर इसकी खेती होती है।मिथिलांचल में मधुबनी और दरभंगा, सहरसा, पुर्णिया, मधेपुरा, कटिहार जिले शामिल हैं।
मखाने को GI टैग मिलने के बाद इससे बड़े पैमाने पर किसानों को लाभ अर्जित करने का अवसर मिलने की उम्मीद है।
बिहार के मखाना प्रति वर्ष एक हजार करोड़ का कारोबार करता है। जिसमें विदेशों से हाेने वाली आय प्रमुख है। लेकिन उम्मीद की जा रही है कि GI टैग मिलने के बाद कारोबार में 10 गुना तक की बढ़ोतरी आएगी। जिसके बाद मखाने का कारोबार 10 हजार करोड़ तक पहुंच सकता है।
पहली बार विदेश में मनेगा बिहार दिवस….
बिहार में मखाना की खेती करने वाले किसानों को नीतीश सरकार द्वारा आर्थिक मदद दी जाती है। बिहार कृषि विभाग, बागवानी निदेशालय ने मखाना के उच्च प्रजाति के बीज ‘साबौर मखाना-1’ और ‘स्वर्ण वैदेही प्रभेद’ की खेती और बीज उत्पादन के लिए 97,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत रखी है, जिस पर लाभार्थी किसानों को 75% अनुदान दिया जाता है।
इतना ही नहीं, इसकी प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए भी सरकार ने किसानों को 15 प्रतिशत और किसान उत्पादक सगंठनों को 25% आर्थिक मदद का प्रावधान किया है। ये बिहार सरकार की मखाना विकास योजना है, जिसके तहत कटिहार, दरभंदा, सुपौल, किशनगंज, पूर्णिया, सहरसा, अररिया, पश्चिम चंपारण, मधेपुरा, मधुबनी और सीतामढ़ी को कवर किया जा रहा है।
मखाना न सिर्फ सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है बल्कि आमदनी का भी बेहतरीन जरिया है।