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आखिर बिहार को क्यों मिलना चाहिए विशेष राज्य दर्जा? क्या है पैमाना और कितनी मिलेगी हिस्सेदारी?

बिहार को इसलिए मिल सकता विशेष दर्जा

पटना: पिछले 10-12 सालों से राज्य की विकास दर 10% से अधिक रहने के बावजूद बिहार कई मानकों पर राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है। गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली आबादी। प्रति व्यक्ति आय में बिहार बहुत पीछे है। प्रति व्यक्ति आय में तो हाल के वर्षों में इजाफा हुआ है, लेकिन राज्य की प्रति व्यक्ति आय अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। औद्योगिकीकरण, सामाजिक एवं भौतिक आधारभूत संरचना के मामले में भी प्रदेश बहुत पिछड़ा है। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले कई सालों से बिहार को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं।

बिहार को इसलिए मिल सकता विशेष दर्जा

बिहार एक कृषि प्रधान राज्‍य है। यहां की 90 फीसदी आबादी कृषि कार्य कर जीवकोपार्जन करती है। बिहार में एक ही समय बाढ़ और सूखा की आपदा लोग झेलते हैं। हर वर्ष आनेवाले प्राकृतिक आपदा बाढ़ और सूखा के कारण यह देश के सबसे गरीब राज्‍यों में से एक है। जनसंख्‍या के लिहाज से उत्‍तरप्रदेश के बाद बिहार देश का दूसरा बड़ा राज्‍य है। यहां की बड़ी जनसंख्‍या भूमिहीन है। साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्‍य बनने के बाद यहां प्राकृतिक संसाधन नहीं के बराबर है।

पहले राशि आवंटन के लिए था गाडगिल-मुखर्जी फार्मूला

नीति आयोग से पहले तक गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के तहत केंद्रीय राशि का आवंटन होता रहा है। 1969 में योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष डीआर गाडगिल ने जो फार्मूला तय किया, उसे गाडगिल फार्मूला कहा गया। गाडगिल प्रसिद्ध सोशल साइंटिस्ट थे। बाद में योजना आयोग के उपाध्यक्ष की हैसियत से 1991 में प्रणब मुखर्जी ने कुछ संशोधन प्रस्तावित किए। संशोधित फार्मूले को गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले का नाम दिया गया। इसके निम्न चार पैमाने थे।

1. आबादी

2. प्रति व्यक्ति आय

3. वित्तीय प्रबंधन

4. विशेष समस्याएं

कोर योजना के रूप में चिन्हित इन 27 योजनाओं में 50:50 के अनुपात में धन मिलता है। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने के बाद राशि 90:10 के अनुपात में मिलेगा।

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