
पटना: एक तरफ बिहार की पूरी राजनीति जातीय लामबंदी में लगी थी, वहीं नीतीश कुमार ने इससे अलग हटकर आधी आबादी मतलब महिलाओं को केंद्र में रखकर शासन की योजनाओं का निर्माण करना शुरू किया। नीतीश कुमार के कार्यों से महिलाओं के जीवन के हर स्तर पर बदलाव आना शुरू हो गया।

नीतीश कुमार की इस नई राजनीतिक क्रांति का परिणाम हुआ कि बड़े-बड़े समीक्षक पिछले 17 वर्षों से इस बात को समझने में मात खा रहे हैं कि आखिर नीतीश कुमार किस जातीय समीकरण से लगातार जीत हासिल कर रहे हैं। सीएम नीतीश ने महिला आरक्षण, शराबबंदी और जीविका जैसे महत्पूर्ण कार्यक्रम के माध्यम से एक खास जाति मतलब महिला जाति का विश्वास हासिल किया है। समाज सुधार और सामाजिक न्याय की जमीन पर तैयार हुए इस वोट वैंक में सेंध लगाने में विपक्ष हमेशा से नाकाम रहा है। जिस तरह से विपक्षी पार्टी शराबबंदी के खिलाफ बयानबाजी करते हैं।
पंचायत में आरक्षण हो या कॉलेजों में सीटों का आवंटन। रोजगार के अवसर हों या पढ़ने के लिए प्रोत्साहन। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नीतियां न बनायी हो। नियोजित शिक्षकों में सबसे अधिक हिस्सेदारी महिलाओं को ही दी गयी है। आज लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाएं मजबूती से अपनी हिस्सेदारी साबित कर रही हैं।
स्कूलों में छात्राओं के औसत में सुधार हो रहा है। उच्च और तकनीकी शिक्षा में लड़कियों की हिस्सेदारी बढ़ रही है। पुलिस में महिलाओं की भर्ती से सभी थानों में इनकी उपस्थिति सुनिश्चित हो रही है। महिलाओं के सशक्तिकरण से जनसंख्या नियंत्रण से लेकर शिशुमृत्यु दर तक के आंकड़ों में सुधार हो रहा। शराबबंदी से सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को ही हुआ है।