कोयला आधारित बिजलीघरों के संचालकों पर फ्लाई एश से संबंधित दुर्घटनाओं के लिए जुर्माना लगाने और दुर्घटना से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने का प्रावधान है। पर दुर्घटनाएं अक्सर होती रहती हैं और मुआवजा का भुगतान करने में लालफीताशाही हावी रहती है। कहलगांव सुपर थर्मल पावर प्लांट में हुई दुर्घटना के मुआवजा का मामला जिला प्रशासन के पास अटका पड़ा है।यह रिपोर्ट – “लेस्ट वी फॉरगेट- ए स्टेटस रिपोर्ट ऑफ नेगलेक्ट ऑफ कोल एश एक्सिडेट इन इंडिया ( मई 2019 – मई2021)” जिसे असर सोशल इंपैक्ट एडवाइजर्स, सेंटर फार रीसर्च ऑन इनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) और मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट आठ दुर्घटनाओं के अध्ययन पर आधारित है जिसमें मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत छह राज्यों में हुई दुर्घटनाएं शामिल हैं।कहलगांव में फ्लाई ऐश के बांध में दरार आने का असर करीब 200 सौ एकड़ जमीन पर पड़ा। खेतों में राख की घोल (एश-स्लरी) भर गई थी और रब्बी की खड़ी फसल बर्बाद हो गई। यह दुर्घटना नवंबर 2020 में हुई थी इसका प्रभाव जब कम होने लगा था, तभी फ्लाई एश पाइपलाइन में 20 जनवरी 2021 को दरार आ गई जिससे खेती की 20 एकड़ जमीन में राख भरी पानी भर गया और खेत एकबार फिर बर्बाद हो गए। इस नुकसान के मुआवजा का मामला अभी जिला प्रशासन के पास अटका पड़ा है।
मुआवजा का नहीं हुआ है भुगतान
बिजलीघरों के आसपास निवास करने वाली आबादी को मुआवजा का पूरा भुगतान कभी नहीं हुआ, अनेक लोगों की आजीविका के साथ-साथ स्वास्थ्य पर भी इन दुर्घटनाओं का असर पड़ता है। इन मामलों का अध्ययन कर जारी एक रिपोर्ट में यह मामला उजागर हुआ है। रिपोर्ट के लेखकों ने स्पष्ट किया है कि दुर्घटना के कई महीनों के बाद भी कुछ मामलों में अभी तक फ्लाई एश खेतों में पड़ी है, कुछ जगहों पर गांवों के आसपास के कुओं में राख भरी हुई है जिससे वह उपयोग के लायक नहीं रह गया है। पावर प्लांट न केवल राख हटाने, स्थल को दुरुस्त करने, स्वास्थ्यगत प्रभावों का निदान निकालने में नाकाम रहा, बल्कि प्रभावित गांववालों को पूरा मुआवजा देने में भी नाकाम रहा है।
फैल रहे हैं रोग-
हवा में मिली राख की वजह से क्षय रोग (टीबी) और सांस संबंधी बीमारियां समूचे केन्द्रीय भारत में फैल रही हैं। इसका प्रभाव प्राकृतिक जलस्रोतों के गंभीर प्रदूषण के रूप में भी दिख रहा है क्योंकि राख को सीधे नदी में डाल दिया जाता है। ताजा दुर्घटना 15 जून को छत्तीसगढ़ के कोबरा में एनटीपीसी और एसीबी इंडिया पावर प्लांट में हुई जिसमें एश डैम में दरार आने से राख मकान और खेतों में फैल गया, लोग प्रभावित हुए।
राख से जुड़ी दुर्घटनाओं की प्रकृति और आजीविका पर प्रभाव से जोड़ते हुए मंथन अध्ययन केन्द्र की सह-लेखक सेहर रहेजा ने कहा कि “संरचनात्मक रूप से अस्थिर एश पौंड और रिसाव वाले एश स्लरी (राख का घोल) के पाइपलाइनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है जिनके कारण खेतों और उस पूरे इलाके को जहरीली राख (कोल एश) ने ढंक लिया है। इसे विभिन्न राज्यों में हुई दुर्घटनाओं में समान रूप से देखा जा सकता है।“
श्रीपाद धर्माधिकारी ने उठाया सवाल-
बता दें कि मंथन अध्ययन केंन्द्र के पॉलिसी रिसर्चर श्रीपाद धर्माधिकारी ने प्रारुप अधिसूचना में उपयोगिता शब्द के प्रायोग पर सवाल उठाया है। प्रारुप अधिसूचना जैसा अभी है, उसमें फ्लाई-एश के उपयोग और निपटारा में फर्क नहीं किया गया है। यह उपयोग फ्लाई एश को किसी गहरे इलाके में छोड़ देने या बेकार खदान में डाल देने जैसा है। उन्होंने कहा कि यह फ्लाई एश को हटा देने से अधिक कुछ नहीं है। इसे उपयोग नहीं कहा जा सकता। उन्होंने इस तरह के कचरे का निपटारा करने में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत को रेखांकित किया है।