
बिहार में कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच सरकार ने श्रावणी मेला पर पाबंदी लगा दी है। कोविड नियमों के तहत किसी भी सार्वजनिक मेला या समारोह पर पाबंदी रहेगी। साथ ही मंदिरों में कांवर ले जाने पर भी रोक लगाई गई है। मंदिरों में पहली सोमवारी से ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने का निर्देश दिया गया है। झारखंड सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि श्रावणी मेला नहीं लगेगा। इसके बाद से श्रावणी मेले में दुकान लगाने वाले दुकानदारों में निराशा फैल गई है। सुल्तानगंज से देवघर तक की 88 किलोमीटर की कांवर यात्रा में लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। श्रावणी मेला के शुरू होने से पहले से ही सुल्तानगंज में करीब 2000 अस्थायी दुकानें खुल जाती थी। इनमें फल-फूल, चुड़ी लहठी, पूजा, विश्रामस्थल, दुकानों में खाने पीने के लिए छोटे बड़े होटल के साथ साथ ठहरने और रास्ते भर के लिए आवश्यक चीजों की दुकानें सज जाती थीं। इसके लिए मनमाने तरीके से भाड़े भी वसूले जाते हैं, जो वार्षिक आय के रूप में काम आता है।
इस संबंध चूड़ी लहटी विक्रेता महेश दास ने बताया कि यह भाड़ा 1000 से शुरू होकर 10 से 15 लाख तक का भी होता है। यह जगह और क्षेत्रफल पर निर्भर है। करीब 3500 लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है। सुरेश तांती, गोपाल झा ने बताया कि शहर से लेकर सुदूर क्षेत्रों में ठहराव के नाम पर भी मनमाना रुपये वसूले जाते हैं। उन्होंने बताया कि मेला मुख्य रूप से सावन के एक महीने तक ही रहता है, लेकिन विगत 5-6 सालों से भादों महीने में भी सावन महीने की तरह ही भीड़ भाड़ रहती हैं। इस दौरान सुल्तानगंज शहर से लेकर देवघर के पूरे रास्ते में टेंट और पंडाल के ठहराव बनाए जाते हैं, जो मनमाना रुपया वसूलते हैं। सुल्तानगंज निवासी प्रफ्फुलचंद मिश्रा बताते हैं कि केवल शहर से भाड़ा के नाम पर करीब डेढ़ से 2 करोड़ रुपए की आमदनी होती हैं।
सावन महीने में लगने वाले श्रावणी मेले में न सिर्फ बिहार के कोने-कोने से बल्कि बिहार के अलावा दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु देवघर में जलाभिषेक करने के लिए सुल्तानगंज आते हैं। उसमें लग्जरी गाड़ियों के साथ साथ बस और ट्रक से भी लोग भर भर कर आते हैं। उनमें झारखंड, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल आदि से लोग इस यात्रा में शामिल होने आते हैं। इससे ट्रांसपोर्टरों की भी अच्छी कमाई होती है, लेकिन पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना की वजह से उनके इस आमदनी पर ग्रहण लगता दिख रहा है। बात सुल्तानगंज की हो या देवघर की सबसे ज्यादा कमाई पंडाओं की होती है। हर साल 70 से 75 लाख कांवरिए सुल्तानगंज से जल लेकर देवघर जलाभिषेक करते हैं। वैसे तो इन पंडाओं की कमाई सालों भर होती है, लेकिन कहा जाता है कि यह लोग एक महीने की कमाई से सालों भर बैठकर खाते हैं। पिछले साल के लॉकडाउन ने इनकी कमर तोड़ दी है। इस बावत सुल्तानगंज के मारवाड़ी युवा मंच के उपाध्यक्ष मनोज कुमार जादुका ने बताया कि अब तो पंडा समाज में भी लोग नौकरी वगैरह करने लगे हैं, लेकिन अभी भी लाखों पंडा परिवार ऐसे हैं जिनके जीविकोपार्जन का आधार यही है, उनकी हालत बहुत खराब हो गई है।