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लालूवाद पर JDU ने सवाल पूछने का सिलसिला किया शुरू, लालू ने जानवर पालने वालों को क्यों दिया धोखा?

बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और विधान पार्षद नीरज कुमार ने एक बार फिर राजद सुप्रीमो पर निशाना साधा है. नीरज कुमार ने कहा कि लालूवाद विचारधारा है तो सवाल तो हम पूछेंगे। उन्होंने कहा कि वे 25 दिनों तक लगातार लालूवाद से जुड़े सवाल पूछेंगे। आज का सवाल पशु और पशुपालकों से संबंधित है। लालूवाद अगर विचारधारा है तो सामाजिक न्याय से फर्जीवाड़ा क्यों?  पशु चारा से पेट नहीं भरा तो पशुपालकों के साथ भी नहीं किया न्याय। लालूवाद विचारधारा वाले राज में पशुपालकों की हालत कांग्रेस राज से बदतर हो गई थी।

लालूवाद विचारधारा है तो सवाल तो हम पूछेंगे…..राजद बताए लालू-राबड़ी के कार्यकाल के दौरान दुधारू पशुओं की संख्या और दुग्ध उत्पादन कितनी बढ़ोतरी हुई? लालू-राबड़ी राज में कितने पशु चिकित्सा केंद्रों की स्थापना की गई? कितने पशु चिकित्सकों की भर्ती की गई ? कौन-से पशु शोध व शिक्षण संस्थान कि स्थापना की गई?  क्या ऐसा करके लालूवाद ने पशुपालकों के साथ धोखा नहीं किया?

लालू-राबड़ी ने पिछड़ी जातियों के उत्थान के नाम पर पंद्रह वर्षों तक राज किया। दुग्ध उत्पादन-व्यापार जाति विशेष(पशुपालकों) का मुख्य व्यवसाय माना जाता था।लेकिन तथाकथित लालूवाद की सरकार ने अपने समाज के लोगों का भी उत्थान नहीं किया। लालू-राबड़ी के कार्यकाल के दौरान बिहार में पशु चिकित्सा केंद्रों और पशु चिकित्सकों पर पशुओं के इलाज का भार बढ़ गया। वर्ष 1980-81 में बिहार में एक पशु चिकित्सक पर 28.95 हज़ार जानवरों के इलाज की ज़िम्मेदारी थी। 1990-91 में यह 18.37 हज़ार पर पहुँच गई . लालूवाद के दौरान वर्ष 2003-04 पहुंचते-पहुंचते 29.61 हज़ार पर पहुँच गई। मतलब…. बिहार इस इस क्षेत्र में जितना विकास 1980-81 से 1990-91 के दौरान किया लालूवाद की सरकार ने अगले बारह वर्षों में बिहार को 1980-81 से भी पीछे धकेल दिया।

सवाल यह है कि लालूवाद की सरकार के कार्यकाल के दौरान बिहार में पशु चिकित्सकों और पशु चिकित्सालयों की कुल संख्या में कमी आयी। वर्ष 1980-81 में बिहार में एक पशु चिकित्सालय पर 28.20 हज़ार जानवर के इलाज का भार था जो 1990-91 में सुधार होकर 26.66 हज़ार पर पहुँची. लालूवाद के दौरान वर्ष 2003-04 पहुंचते पहुंचते यह संख्या 31.69 हज़ार पर पहुँच गई.यानी पशु अस्पताल पर भार बढ़ते गया।  

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